30-09-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - सदा श्रीमत पर चलना - यही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है, श्रीमत पर चलने से आत्मा का दीपक जग जाता है''
प्रश्नः- पूरा-पूरा पुरुषार्थ कौन कर सकते हैं? ऊंच पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:- पूरा पुरुषार्थ वही कर सकते जिनका अटेन्शन वा बुद्धियोग एक में है। सबसे ऊंचा पुरुषार्थ है बाप के ऊपर पूरा-पूरा कुर्बान जाना। कुर्बान जाने वाले बच्चे बाप को बहुत प्रिय लगते हैं।
प्रश्नः- सच्ची-सच्ची दीपावली मनाने के लिए बेहद का बाप कौन-सी राय देते हैं?
उत्तर:- बच्चे, बेहद की पवित्रता को धारण करो। जब यहाँ बेहद पवित्र बनेंगे, ऐसा ऊंचा पुरुषार्थ करेंगे तब लक्ष्मी-नारायण के राज्य में जा सकेंगे अर्थात् सच्ची-सच्ची दीपावली वा कारोनेशन डे मना सकेंगे।
ओम् शान्ति। बच्चे अभी यहाँ बैठकर क्या कर रहे हैं? चलते फिरते अथवा यहाँ बैठे-बैठे जन्म-जन्मान्तर के जो पाप सिर पर हैं, उन पापों का याद की यात्रा से विनाश करते हैं। यह तो आत्मा जानती है, हम जितना बाप को याद करेंगे उतना पाप कटते जायेंगे। बाप ने तो अच्छी रीति समझाया है - भल यहाँ बैठे हो तो भी जो श्रीमत पर चलने वाले हैं, उनको तो बाप की राय अच्छी ही लगेगी। बेहद बाप की राय मिलती है, बेहद पवित्र बनना है। तुम यहाँ आये हो बेहद पवित्र बनने के लिए, सो बनेंगे ही याद की यात्रा से। कई तो बिल्कुल याद कर नहीं सकते, कई समझते हैं हम याद की यात्रा से अपने पाप काट रहे हैं, गोया अपना कल्याण कर रहे हैं। बाहर वाले तो इन बातों को जानते नहीं। तुमको ही बाप मिला है, तुम रहते ही हो बाप के पास। जानते हो अभी हम ईश्वरीय सन्तान बने हैं, आगे आसुरी सन्तान थे। अब हमारा संग ईश्वरीय सन्तानों से है। गायन भी है ना - संग तारे कुसंग डुबोये। बच्चों को घड़ी-घड़ी यह भूल जाता है कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं तो हमको ईश्वरीय मत पर ही चलना चाहिए, न कि अपनी मनमत पर। मनमत मनुष्य मत को कहा जाता है। मनुष्य मत आसुरी ही होती है। जो बच्चे अपना कल्याण चाहते हैं वह बाप को अच्छी रीति याद करते रहते हैं, सतोप्रधान बनने के लिए। सतोप्रधान की महिमा भी होती है। बरोबर जानते हैं हम सुखधाम के मालिक बनते हैं नम्बरवार। जितना-जितना श्रीमत पर चलते हैं, उतना ऊंच पद पाते हैं, जितना अपनी मत पर चलते तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। अपना कल्याण करने के लिए बाप के डायरेक्शन तो मिलते ही रहते हैं। बाप ने समझाया है यह भी पुरुषार्थ है, जो जितना याद करते हैं तो उनके भी पाप कटते हैं। याद की यात्रा बिगर तो पवित्र बन नहीं सकेंगे। उठते, बैठते, चलते यही ओना रखना है। तुम बच्चों को कितने वर्षों से शिक्षा मिली है तो भी समझते हैं हम बहुत दूर हैं। इतना बाप को याद नहीं कर सकते हैं। सतोप्रधान बनने में तो बहुत टाइम लग जायेगा। इस बीच में शरीर छूट जाए तो कल्प-कल्पान्तर के लिए कम पद हो जायेगा। ईश्वर का बने हैं तो उनसे पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करना चाहिए। बुद्धि एक तरफ ही रहनी चाहिए। तुमको अब श्रीमत मिलती है। वह है ऊंच ते ऊंच भगवान। उनकी मत पर नहीं चलेंगे तो बहुत धोखा खायेंगे। चलते हो वा नहीं, वह तो तुम जानो और शिवबाबा जाने। तुमको पुरुषार्थ कराने वाला वह शिवबाबा है। देहधारी सब पुरुषार्थ करते हैं। यह भी देहधारी है, इनको शिवबाबा पुरुषार्थ कराते हैं। बच्चों को ही पुरुषार्थ करना है। मूल बात है पतितों को पावन बनाने की। वैसे दुनिया में पावन तो बहुत होते हैं। सन्यासी भी पवित्र रहते हैं। वह तो एक जन्म के लिए पावन बनते हैं। ऐसे बहुत हैं जो इस जन्म में बाल ब्रह्मचारी रहते हैं। वह कोई दुनिया को मदद नहीं दे सकते हैं पवित्रता की। मदद तब हो जबकि श्रीमत पर पावन बनें और दुनिया को पावन बनायें।
अभी तुमको श्रीमत मिल रही है। जन्म-जन्मान्तर तो तुम आसुरी मत पर चले हो। अब तुम जानते हो सुखधाम की स्थापना हो रही है। जितना हम श्रीमत पर पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। यह ब्रह्मा की मत नहीं है। यह तो पुरुषार्थी है। इनका पुरुषार्थ जरूर इतना ऊंच है तब तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तो बच्चों को यह फालो करना है। श्रीमत पर चलना पड़े, मनमत पर नहीं। अपने आत्मा की ज्योति को जगाना है। अभी दीपावली आती है, सतयुग में दीपावली होती नहीं। सिर्फ कारोनेशन है। बाकी आत्मायें तो सतोप्रधान बन जाती हैं। यह जो दीपमाला मनाते हैं, वह है झूठी। बाहर के दीपक जगाते हैं, वहाँ तो घर-घर में दीप जगा हुआ है अर्थात् सबकी आत्मा सतोप्रधान रहती है। 21 जन्मों के लिए ज्ञान घृत पड़ जाता है। फिर आहिस्ते-आहिस्ते कम होते-होते इस समय ज्योति उझाई है - सारी दुनिया की। इसमें भी खास भारतवासी, आम दुनिया। अभी पाप आत्मायें तो सब हैं, सबकी कयामत का समय है, सबको हिसाब-किताब चुक्तू करना है। अभी तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है ऊंच ते ऊंच पद पाने का, श्रीमत पर चलने से ही पायेंगे। रावण राज्य में तो शिवबाबा की बहुत अवज्ञा की है। अब भी उनके फ़रमान पर नहीं चलेंगे तो बहुत धोखा खायेंगे। उनको ही बुलाया है कि आकर हमको पावन बनाओ। तो अब अपना कल्याण करने के लिए शिवबाबा की श्रीमत पर चलना पड़े। नहीं तो बहुत अकल्याण हो जायेगा। मीठे-मीठे बच्चे यह भी जानते हो - शिवबाबा की याद बिगर हम सम्पूर्ण पावन बन नहीं सकते। तुमको इतने वर्ष हुए हैं फिर भी ज्ञान की धारणा क्यों नहीं होती है। सोने के बर्तन में ही धारणा होगी। नये-नये बच्चे कितने सर्विसएबुल हो जाते हैं। फर्क देखो कितना है। पुराने-पुराने बच्चे इतना याद की यात्रा में नहीं रहते, जितना नये रहते हैं। कई अच्छे शिवबाबा के लाडले बच्चे आते हैं, कितनी सर्विस करते हैं। जैसेकि शिवबाबा के पिछाड़ी आत्मा को कुर्बान कर दिया है। कुर्बान करने से फिर सर्विस भी कितनी करते हैं। कितने प्रिय मीठे लगते हैं। बाप को मदद करते ही हैं याद की यात्रा में रहने से। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे। बुलाया ही है कि मुझे आकर पावन बनाओ तो अब बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो। देह के सम्बन्ध सब त्याग करना पड़े। मित्र-सम्बन्धियों आदि की भी याद न रहे, सिवाए एक बाप के, तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। याद नहीं करेंगे तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। यह बापदादा भी समझ सकते हैं। तुम बच्चे भी जानते हो। नये-नये आते हैं, समझते हैं दिन-प्रतिदिन सुधरते जाते हैं। श्रीमत पर चलने से ही सुधरते हैं। क्रोध पर भी पुरुषार्थ करते-करते जीत पाते हैं। तो बाप भी समझाते हैं, खराबियों को निकालते रहो। क्रोध भी बड़ा खराब है। अपने अन्दर को भी जलाते हैं, दूसरे को भी जलाते हैं। वह भी निकलना चाहिए। बच्चे बाप की श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो पद कम हो जाता है, जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर का घाटा पड़ जाता है।
तुम बच्चे जानते हो कि वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं। हर प्रकार की सम्भाल भी होती रहती है। कोई विकारी यहाँ अन्दर (मधुबन में) आ न सके। बीमारी आदि में भी विकारी मित्र-सम्बन्धी आयें, यह तो अच्छा नहीं। पसन्द भी हम न करें। नहीं तो अन्तकाल वह मित्र-सम्बन्धी ही याद पड़ेंगे। फिर वह ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाप तो पुरुषार्थ कराते हैं, कोई की भी याद न आये। ऐसे नहीं, हम बीमार हैं इसलिए मित्र-सम्बन्धी आदि आयें देखने के लिए। नहीं, उन्हों को बुलाना, कायदा नहीं। कायदेसिर चलने से ही सद्गति होती है। नहीं तो मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं। परन्तु तमोप्रधान बुद्धि यह समझते नहीं हैं। ईश्वर राय देते हैं तो भी सुधरते नहीं। बड़ा खबरदारी से चलना चाहिए। यह है होलीएस्ट ऑफ होली स्थान। पतित ठहर न सकें। मित्र-सम्बन्धी आदि याद होंगे तो मरने समय जरूर वह याद आयेंगे। देह-अभिमान में आने से अपने को ही नुकसान पहुँचाते हैं। सज़ा के निमित्त बन पड़ते हैं। श्रीमत पर न चलने से बड़ी दुर्गति हो जाती है। सर्विस लायक बन न सके। कितना भी माथा मारे परन्तु सर्विस लायक हो नहीं सकते। अवज्ञा की तो पत्थरबुद्धि बन जाते हैं। ऊपर चढ़ने बदले नीचे गिर जाते हैं। बाप तो कहेंगे बच्चों को आज्ञाकारी बनना चाहिए। नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। लौकिक बाप के पास भी 4-5 बच्चे होते हैं, परन्तु उनमें जो आज्ञाकारी होते हैं वही बच्चे प्रिय लगते हैं। जो आज्ञाकारी नहीं वह तो दु:ख ही देंगे। अभी तुम बच्चों को दोनों बाप बहुत बड़े मिले हैं, उनकी अवज्ञा नहीं करनी है। अवज्ञा करेंगे तो जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर बहुत कम पद पायेंगे। पुरुषार्थ ऐसा करना है जो अन्त में एक ही शिवबाबा याद आये। बाप कहते हैं मैं जान सकता हूँ - हर एक क्या पुरुषार्थ करते हैं। कोई तो बहुत थोड़ा याद करते हैं, बाकी तो अपने मित्र-सम्बन्धियों को ही याद करते रहते हैं। वह इतना खुशी में नहीं रह सकते। ऊंच पद पा न सकें।
तुम्हारा तो रोज़ सतगुरूवार है। बृहस्पति के दिन कॉलेज में बैठते हैं। वह है जिस्मानी विद्या। यह तो है रूहानी विद्या। तुम जानते हो शिवबाबा हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है। तो उनके डायरेक्शन पर चलना चाहिए, तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। जो पुरुषार्थी हैं, उन्हों के अन्दर बहुत खुशी रहती है। बात मत पूछो। खुशी है तो औरों को भी खुश करने का पुरुषार्थ करते हैं। बच्चियां देखो कितनी मेहनत करती रहती हैं - दिन-रात क्योंकि यह वन्डरफुल ज्ञान है ना। बापदादा को तरस पड़ता है कि कई बच्चे बेसमझी से कितना घाटा पाते हैं। देह-अभिमान में आकर अन्दर में बड़ा जलते हैं। क्रोध में मनुष्य ताम्बे जैसा लाल हो जाते हैं। क्रोध मनुष्य को जलाता है, काम काला बना देता है। मोह अथवा लोभ में इतना जलते नहीं हैं। क्रोध में जलते हैं। क्रोध का भूत बहुतों में है। कितना लड़ते हैं। लड़ने से अपना ही नुकसान कर लेते हैं। निराकार साकार दोनों की अवज्ञा करते हैं। बाप समझते हैं यह तो कपूत हैं। मेहनत करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। तो अपने कल्याण के लिए सब सम्बन्ध भुला देने हैं। सिवाए एक बाप के किसको भी याद नहीं करना है। घर में रहते सम्बन्धियों को देखते हुए शिवबाबा को याद करना है। तुम हो संगमयुग पर, अब अपने नये घर को, शान्तिधाम को याद करो।
यह तो बेहद की पढ़ाई है ना। बाप शिक्षा देते हैं इसमें बच्चों का ही फ़ायदा है। कई बच्चे अपनी बेढंगी चलन से मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं। पुरुषार्थ करते हैं विश्व की बादशाही लेने के लिए परन्तु माया बिल्ली कान काट लेती है। जन्म लिया है, कहते हैं हम यह पद पायेंगे परन्तु माया बिल्ली लेने नहीं देती, तो पद भ्रष्ट हो जाता है। माया बड़ा जोर से वार कर देती है। तुम यहाँ आते हो राज्य लेने के लिए। परन्तु माया हैरान करती है। बाप को तरस पड़ता है बिचारे ऊंच पद पावें तो अच्छा है। मेरी निंदा कराने वाला न बनें। सतगुरू का निंदक ठौर न पाये, किसकी निंदा? शिवबाबा की। ऐसी चलन नहीं चलनी चाहिए जो बाप की निंदा हो, इसमें अहंकार की बात नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
तुम बच्चे जानते हो कि वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं। हर प्रकार की सम्भाल भी होती रहती है। कोई विकारी यहाँ अन्दर (मधुबन में) आ न सके। बीमारी आदि में भी विकारी मित्र-सम्बन्धी आयें, यह तो अच्छा नहीं। पसन्द भी हम न करें। नहीं तो अन्तकाल वह मित्र-सम्बन्धी ही याद पड़ेंगे। फिर वह ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाप तो पुरुषार्थ कराते हैं, कोई की भी याद न आये। ऐसे नहीं, हम बीमार हैं इसलिए मित्र-सम्बन्धी आदि आयें देखने के लिए। नहीं, उन्हों को बुलाना, कायदा नहीं। कायदेसिर चलने से ही सद्गति होती है। नहीं तो मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं। परन्तु तमोप्रधान बुद्धि यह समझते नहीं हैं। ईश्वर राय देते हैं तो भी सुधरते नहीं। बड़ा खबरदारी से चलना चाहिए। यह है होलीएस्ट ऑफ होली स्थान। पतित ठहर न सकें। मित्र-सम्बन्धी आदि याद होंगे तो मरने समय जरूर वह याद आयेंगे। देह-अभिमान में आने से अपने को ही नुकसान पहुँचाते हैं। सज़ा के निमित्त बन पड़ते हैं। श्रीमत पर न चलने से बड़ी दुर्गति हो जाती है। सर्विस लायक बन न सके। कितना भी माथा मारे परन्तु सर्विस लायक हो नहीं सकते। अवज्ञा की तो पत्थरबुद्धि बन जाते हैं। ऊपर चढ़ने बदले नीचे गिर जाते हैं। बाप तो कहेंगे बच्चों को आज्ञाकारी बनना चाहिए। नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। लौकिक बाप के पास भी 4-5 बच्चे होते हैं, परन्तु उनमें जो आज्ञाकारी होते हैं वही बच्चे प्रिय लगते हैं। जो आज्ञाकारी नहीं वह तो दु:ख ही देंगे। अभी तुम बच्चों को दोनों बाप बहुत बड़े मिले हैं, उनकी अवज्ञा नहीं करनी है। अवज्ञा करेंगे तो जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर बहुत कम पद पायेंगे। पुरुषार्थ ऐसा करना है जो अन्त में एक ही शिवबाबा याद आये। बाप कहते हैं मैं जान सकता हूँ - हर एक क्या पुरुषार्थ करते हैं। कोई तो बहुत थोड़ा याद करते हैं, बाकी तो अपने मित्र-सम्बन्धियों को ही याद करते रहते हैं। वह इतना खुशी में नहीं रह सकते। ऊंच पद पा न सकें।
तुम्हारा तो रोज़ सतगुरूवार है। बृहस्पति के दिन कॉलेज में बैठते हैं। वह है जिस्मानी विद्या। यह तो है रूहानी विद्या। तुम जानते हो शिवबाबा हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है। तो उनके डायरेक्शन पर चलना चाहिए, तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। जो पुरुषार्थी हैं, उन्हों के अन्दर बहुत खुशी रहती है। बात मत पूछो। खुशी है तो औरों को भी खुश करने का पुरुषार्थ करते हैं। बच्चियां देखो कितनी मेहनत करती रहती हैं - दिन-रात क्योंकि यह वन्डरफुल ज्ञान है ना। बापदादा को तरस पड़ता है कि कई बच्चे बेसमझी से कितना घाटा पाते हैं। देह-अभिमान में आकर अन्दर में बड़ा जलते हैं। क्रोध में मनुष्य ताम्बे जैसा लाल हो जाते हैं। क्रोध मनुष्य को जलाता है, काम काला बना देता है। मोह अथवा लोभ में इतना जलते नहीं हैं। क्रोध में जलते हैं। क्रोध का भूत बहुतों में है। कितना लड़ते हैं। लड़ने से अपना ही नुकसान कर लेते हैं। निराकार साकार दोनों की अवज्ञा करते हैं। बाप समझते हैं यह तो कपूत हैं। मेहनत करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। तो अपने कल्याण के लिए सब सम्बन्ध भुला देने हैं। सिवाए एक बाप के किसको भी याद नहीं करना है। घर में रहते सम्बन्धियों को देखते हुए शिवबाबा को याद करना है। तुम हो संगमयुग पर, अब अपने नये घर को, शान्तिधाम को याद करो।
यह तो बेहद की पढ़ाई है ना। बाप शिक्षा देते हैं इसमें बच्चों का ही फ़ायदा है। कई बच्चे अपनी बेढंगी चलन से मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं। पुरुषार्थ करते हैं विश्व की बादशाही लेने के लिए परन्तु माया बिल्ली कान काट लेती है। जन्म लिया है, कहते हैं हम यह पद पायेंगे परन्तु माया बिल्ली लेने नहीं देती, तो पद भ्रष्ट हो जाता है। माया बड़ा जोर से वार कर देती है। तुम यहाँ आते हो राज्य लेने के लिए। परन्तु माया हैरान करती है। बाप को तरस पड़ता है बिचारे ऊंच पद पावें तो अच्छा है। मेरी निंदा कराने वाला न बनें। सतगुरू का निंदक ठौर न पाये, किसकी निंदा? शिवबाबा की। ऐसी चलन नहीं चलनी चाहिए जो बाप की निंदा हो, इसमें अहंकार की बात नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने कल्याण के लिए देह के सब सम्बन्ध भुला देने हैं, उनसे प्रीत नहीं रखनी है। ईश्वर की ही मत पर चलना है, अपनी मत पर नहीं। कुसंग से बचना है, ईश्वरीय संग में रहना है।
2) क्रोध बहुत खराब है, यह स्वयं को जलाता है, क्रोध के वश होकर अवज्ञा नहीं करनी है। खुश रहना है और सबको खुश करने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:- दिल की महसूसता से दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त करने वाले स्व परिवर्तक भव
स्व को परिवर्तन करने के लिए दो बातों की महसूसता सच्चे दिल से चाहिए 1- अपनी कमजोरी की महसूसता 2- जो परिस्थिति वा व्यक्ति निमित्त बनते हैं उनकी इच्छा और उनके मन की भावना की महसूसता। परिस्थिति के पेपर के कारण को जान स्वयं को पास होने के श्रेष्ठ स्वरूप की महसूसता हो कि स्वस्थिति श्रेष्ठ है, परिस्थिति पेपर है - यह महसूसता सहज परिवर्तन करा लेगी और सच्चे दिल से महसूस किया तो दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त होगी।
स्लोगन:- वारिस वह है जो एवररेडी बन हर कार्य में जी हजूर हाजिर कहता है।
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